जब अंग्रेज़ भारत छोड़ कर गए तो इंडिपेंडेंस ऑफ इंडिया एक्ट 1947 के अनुसार सभी रियासतों को यह अधिकार दिया गया कि वह भारत या पाकिस्तान जिस देश मे शामिल होना चाहते है हो सकते है या स्वतंत्रत रहना चाहते है तो रह सकते। उस समय हड़प्पा और मोहनजोदड़ो के समय की एक सभ्यता कलात में रहती थी। कलात ब्रिटिश संरक्षित एक स्वतंत्र रियासत थी, जिसमें जिसमें जिस पर खान ऑफ कलात मीर अहमद खान का शासन था।
कलात रियासत में खारान, लॉस बुला और मकरान शामिल थे। खान ऑफ कलात जानते थे कि दोनों ही देशों के बीच कलात का स्वतंत्र रहना मुमकिन नहीं है। खान ऑफ कलात ने पंडित नेहरू से भारत मे शामिल होने की इच्छा जताई मगर नेहरू ने यह कहकर इनकार कर दिया कि कलात भारत से बहुत दूर है। इसके बाद कलात ने खुद को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया लेकिन मार्च 1948 में पाकिस्तान ने फौज भेजकर इस पूरे इलाके पर कब्जा कर लिया, जिसे आज हम बलोचिस्तान के नाम से जानते हैं।
खान ऑफ कलात के भाई ने इस सैन्य अधिग्रहण के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंक दिया। तब से लेकर बलोचों का पाकिस्तान से आजादी का यह संघर्ष आज भी जारी है,जिसमें हजारों लाखों बलोचों ने अपनी जान कुर्बान की है। बाकी राज्यों या राष्ट्रों की आज़ादी के लिए जहां सत्ता के लालची लोगों ने आम जनता को आगे कर उनकी कुर्बानी दी, वही बलोचिस्तान दुनिया का एकमात्र ऐसा राज्य है जिसकी आजादी के लिए उस पर राज करने वाले राज वंशजों ने अपनी कुर्बानी दी है।
बलूचिस्तान का कुछ हिस्स ईरान के कब्जे में भी है। इसी बलूचिस्तान के लसबेला कस्बे में मौजूद है, बलोचों की आस्था का केंद्र बीबी नानी पीर का मंदिर। बलोचों के लिए यह जगह हज से कम महत्वपूर्ण नहीं है। बीबी नानी पीर का मंदिर असल में 51 शक्तिपीठों में से एक माता हिंगलाज का मंदिर है। हिंगलाज माता मंदिर पहुंचने के आपको 1000 फुट ऊंचे-ऊंचे पहाड़, दूर तक फैला सुनसान रेगिस्तान, जंगली जानवर वाले घने जंगल, 300 फीट ऊंचे मड ज्वालामुखी और आतंकियों से भी जूझना पड़ेगा।
हिंगलाज माता नाथ सम्प्रदाय की कुलदेवी और अघोर सम्प्रदाय की अधिष्ठात्री देवी है। 51 शक्तिपीठों में से यह पहला है जहां माता सती का सिर गिरा था। बलोचों ने इस मंदिर की रक्षा के लिए अपने प्राण कुर्बान किये है। पाकिस्तानी हिन्दू और बलोच मुसलमान साथ मे माता की उपासना करते है। उम्मीद है कि एक रोज बलोचिस्तान आजाद होगा और हम भारत के हिन्दू भी माता हिंगलाज के चरणों को चरणों को स्पर्श कर पाएंगे।
इस 22 जनवरी को जन्म अयोध्या के राम मंदिर में रामलला के आगमन में दीवाली मनाना तो एक दिया उन अनगिनत मन्दिरों के लिए भी जलाना, जो हमसे छीन लिए गए। उन देवी देवताओं के लिए जो अपने घर से बेघर कर दिए गए, तोड़ दिए गए। उन मन्दिरों के लिए जिनके पुनरोद्धार के लिए अभी हमें सदियों इंतजार भी करना होगा और कुर्बानियां भी देनी होगी।